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चौहान वंश के इतिहास पर डॉ. दशरथ शर्मा ने बड़ा खोजपूर्ण एवं विस्तार से ग्रंथ लिखा-"अर्ली चौहान डायनेस्टीज", दूसरा ग्रंथ लिखा "चौहान पृथ्वीराज तृतीय एवं उनका युग"| इनके बहुत वर्ष बाद वी.आर. चौहान ने भी बड़े परिश्रम करके अनेक तथ्य जुटाते हुए एक ग्रंथ लिखा- "दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान एवं उनका युग"| परंतु बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि इन सभी ग्रंथों के स्रोत हैं मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा दी गई जानकारी एवं उनके ग्रंथ| उन्होंने भारतीय स्रोतों की उपेक्षा की।
पृथ्वीराज चौहान के समकालीन दो ग्रंथ है। एक, "पृथ्वीराज रासौ" जो पृथ्वीराज के मित्र, सलाहकार व सचिव कविराज चंद्रवरदाई का तथा दूसरा- "पृथ्वीराज विजय महाकाव्यम" जो कश्मीर के पंडित जयानक ने लिखा|
पाश्चात्य इतिहासकारों एवं भारतीय इतिहासकारों ने "पृथ्वीराज रासौ" ग्रंथ को अविश्वसनीय बताकर उसे ऐतिहासिक स्रोत नहीं माना तथा उसकी पूर्ण उपेक्षा की। जयानक के "पृथ्वीराज विजय महाकाव्यम" जिसमें पृथ्वीराज के विषय में बहुत थोड़ी और सामान्य जानकारी है उसे यह कहते हुए स्रोत के रूप में लिया कि अभी तक उपलब्ध ग्रंथ मात्र उस मूल ग्रंथ की भूमिका मात्र है| इस कारण यह कहा जा सकता है कि आज तक पृथ्वीराज चौहान के विषय में जो भी सामग्री उपलब्ध करवाई जाती है उसमें वास्तविक सम्राट पृथ्वीराज चौहान कहीं भी दिखाई नहीं देता|
प्रस्तुत ग्रंथ में इस कमी को दूर कर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वास्तविक इतिहास को भारतीय स्रोतों के आधार पर रखने का प्रयास किया है |पृथ्वीराज के समकालीन सभी राजाओं को, उत्तर दक्षिण पूर्व और पश्चिम, को पराजित कर सम्राट पद ग्रहण किया। इस प्रकार उसे चक्रवर्ती सम्राट भी कहा जा सकता है जो भारत की संघ राज्य की प्राचीन चक्रवर्ती राजा की संकल्पना थी।
इतना ही नहीं गजनी का मुस्लिम सुल्तान मौहम्मद गौरी के साथ पृथ्वीराज के दो युद्धों का वर्णन सभी ने किया है जबकि गौरी ने पृथ्वीराज के साथ कुल 17 युद्ध किए जिसमें केवल अंतिम युद्ध में ही धोखे से गौरी विजयी रहा। प्रस्तुत ग्रंथ में इन सभी स्थानों के साथ उन युद्धों का विस्तार से वर्णन किया है।
इसके साथ ही 1203 ईसवी में गौरी की सुल्तान के साथ युद्ध में इतनी भयंकर पराजय हुई कि बड़ी कठिनाई से वह अपनी जान बचाकर भाग सका, गजनी भी उसके हाथ से निकल गई| किसी तरह गजनी पर फिर से अधिकार कर सका | संपूर्ण इलाके में यह खबर फैल गई कि खुरासान के साथ युद्ध में गौरी मारा गया। अतः उसने गजनी के विशाल जनसमुदाय के समक्ष अपनी कैद में रह रहे पृथ्वीराज की परीक्षा लेने की योजना बनाई याने वह चंदबरदाई की योजना में फंस गया। पृथ्वीराज के शब्दभेदी बाण से 1203-04 में मोहम्मद गौरी मारा गया| उसकी जीत भी हार में परिणित हो गई|
पुष्ट तथ्यों के साथ इतिहास की इस वास्तविकता को प्रस्तुत ग्रंथ में उजागर किया है|
पुस्तक का लेखन इतिहासकार विजय नाहर द्वारा एवं प्रकाशन दो भागों में यूनिक ट्रेडर्स जयपुर द्वारा किया गया है।
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पुस्तक: वीर शिरोमणि सम्राट पृथ्वीराज चौहान(दो भागों में)
लेखक: विजय नाहर
प्रकाशक: यूनिक ट्रेडर्स, जयपुर
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