Wednesday, July 27, 2022

New Book : सम्राट पृथ्वीराज चौहान पर विश्वसनीय सन्दर्भ पुस्तक

 #वीर #शिरोमणि #सम्राट #पृथ्वीराज #चौहान का #मौलिक #इतिहास

चौहान वंश के इतिहास पर डॉ. दशरथ शर्मा ने बड़ा खोजपूर्ण एवं विस्तार से ग्रंथ लिखा-"अर्ली चौहान डायनेस्टीज", दूसरा ग्रंथ लिखा "चौहान पृथ्वीराज तृतीय एवं उनका युग"| इनके बहुत वर्ष बाद वी.आर. चौहान ने भी बड़े परिश्रम करके अनेक तथ्य जुटाते हुए एक ग्रंथ लिखा- "दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान एवं उनका युग"| परंतु बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि इन सभी ग्रंथों के स्रोत हैं मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा दी गई जानकारी एवं उनके ग्रंथ| उन्होंने भारतीय स्रोतों की उपेक्षा की।
पृथ्वीराज चौहान के समकालीन दो ग्रंथ है। एक, "पृथ्वीराज रासौ" जो पृथ्वीराज के मित्र, सलाहकार व सचिव कविराज चंद्रवरदाई का तथा दूसरा- "पृथ्वीराज विजय महाकाव्यम" जो कश्मीर के पंडित जयानक ने लिखा|
पाश्चात्य इतिहासकारों एवं भारतीय इतिहासकारों ने "पृथ्वीराज रासौ" ग्रंथ को अविश्वसनीय बताकर उसे ऐतिहासिक स्रोत नहीं माना तथा उसकी पूर्ण उपेक्षा की। जयानक के "पृथ्वीराज विजय महाकाव्यम" जिसमें पृथ्वीराज के विषय में बहुत थोड़ी और सामान्य जानकारी है उसे यह कहते हुए स्रोत के रूप में लिया कि अभी तक उपलब्ध ग्रंथ मात्र उस मूल ग्रंथ की भूमिका मात्र है| इस कारण यह कहा जा सकता है कि आज तक पृथ्वीराज चौहान के विषय में जो भी सामग्री उपलब्ध करवाई जाती है उसमें वास्तविक सम्राट पृथ्वीराज चौहान कहीं भी दिखाई नहीं देता|
प्रस्तुत ग्रंथ में इस कमी को दूर कर सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वास्तविक इतिहास को भारतीय स्रोतों के आधार पर रखने का प्रयास किया है |पृथ्वीराज के समकालीन सभी राजाओं को, उत्तर दक्षिण पूर्व और पश्चिम, को पराजित कर सम्राट पद ग्रहण किया। इस प्रकार उसे चक्रवर्ती सम्राट भी कहा जा सकता है जो भारत की संघ राज्य की प्राचीन चक्रवर्ती राजा की संकल्पना थी।
 इतना ही नहीं गजनी का मुस्लिम सुल्तान मौहम्मद गौरी के साथ पृथ्वीराज के दो युद्धों का वर्णन सभी ने किया है जबकि गौरी ने पृथ्वीराज के साथ कुल 17 युद्ध किए जिसमें केवल अंतिम युद्ध में ही धोखे से गौरी विजयी रहा। प्रस्तुत ग्रंथ में इन सभी स्थानों के साथ उन युद्धों का विस्तार से वर्णन किया है।
 इसके साथ ही 1203 ईसवी में गौरी की सुल्तान के साथ युद्ध में इतनी भयंकर पराजय हुई कि बड़ी कठिनाई से वह अपनी जान बचाकर भाग सका, गजनी भी उसके हाथ से निकल गई| किसी तरह गजनी पर फिर से अधिकार कर सका | संपूर्ण इलाके में यह खबर फैल गई कि खुरासान के साथ युद्ध में गौरी मारा गया। अतः उसने गजनी के विशाल जनसमुदाय के समक्ष अपनी कैद में रह रहे पृथ्वीराज की परीक्षा लेने की योजना बनाई याने वह चंदबरदाई की योजना में फंस गया। पृथ्वीराज के शब्दभेदी बाण से 1203-04 में मोहम्मद गौरी मारा गया| उसकी जीत भी हार में परिणित हो गई|
 पुष्ट तथ्यों के साथ इतिहास की इस वास्तविकता को प्रस्तुत ग्रंथ में उजागर किया है|
पुस्तक का लेखन इतिहासकार विजय नाहर द्वारा एवं प्रकाशन दो भागों में यूनिक ट्रेडर्स जयपुर द्वारा किया गया है। 
पुस्तक के लिए +918619457372 पर संपर्क करे।

पुस्तक: वीर शिरोमणि सम्राट पृथ्वीराज चौहान(दो भागों में)
लेखक: विजय नाहर
प्रकाशक: यूनिक ट्रेडर्स, जयपुर
*Original Price* : 1000.0 INR
*Discounted Price* : 700.0 INR
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Friday, June 26, 2020

भारतीय इतिहास:एक सर्वेक्षण | भाग-8 | जब मो. गजनवी भारतीय सम्राट से डरकर गज़नी भागा । विजय नाहर

जाने भारत के गौरवशाली इतिहास के बारे में | इतिहासकार विजय नाहर की व्याख्यानमाला प्रतिहार साम्राज्य के पतन के पश्चात बुंदेलखंड के चंदेलो ने उत्तर भारत में एक शक्तिशाली साम्राज्य खड़ा किया । वर्तमान इतिहास के आधार पर विदेशी आक्रमणकारी गजनी के इस्लामी साम्राज्यवादी महमूद गजनवी ने दो बार चंदेल महाराज विद्याधर पर आक्रमण करने का प्रयत्न किया परंतु उसकी विशाल सेना को देखकर ही प्रथम बार 1018 में गजनी पलायन कर दिया तथा दूसरी बार याने 1022 को संधि करके गजनी लौटना पड़ा। #indianhistory #india #history #historicalresearch #bharat #historian #indian #vijaynahar #gurjar #pratihar #chandel #gaznavi #gazni #gajani #mahipal

Saturday, May 16, 2020

भारतीय इतिहास : एक सर्वेक्षण | भाग-7 | गुर्जर प्रतिहार सम्राट महिपाल प्रथम | इतिहासकार विजय नाहर

गुर्जर प्रतिहार सम्राट महिपाल प्रथम जिसने लगभग उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम समस्त भारतीय क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की थी। गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त की तरह दक्षिण भारत के राज्यों को अपने साम्राज्य में नहीं मिलाया, केवल उन पर प्रभाव पैदा किया एवं वर्चस्व स्थापित किया। इस समय संपूर्ण उत्तर भारत एक छत्र के अंतर्गत संगठित व शक्तिशाली था ।  परंतु ऐसे क्या घटनाक्रम बने जिसके परिणाम स्वरूप सम्पूर्ण साम्राज्य बिखर कर अनेक भागों में विभाजित हो गया, जानने के लिए देखे यह वीडियो।
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Indian History A Survey by Vijay Nahar

Monday, February 24, 2020

भारतीय इतिहास : एक सर्वेक्षण (भाग-6)(उत्तरापथ गुर्जर प्रतिहार सम्राटों का उत्कर्ष )


७३० ईस्वी में भीनमाल में स्थापित गुर्जर प्रतिहार वंश के नागभट्ट प्रथम से चलकर उज्जैन होते हुए नागभट्ट द्वितीय कन्नौज में स्थापित । ८०० ईस्वी से ९२४ ईस्वी तक सम्पूर्ण उत्तर भारत को एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में स्थापित करने वाले नागभट्ट द्वितीय, मिहिर भोज , महेन्द्रपाल प्रथम व महिपाल प्रथम महान सम्राट थे । इस कालखंड में क्या मजाल कि विदेशी शक्तिया भारत कि और आँख उठाकर देख सके । यह एक ऐसा काल था जिसमे भारत राजनैतिक, आर्थिक , सामाजिक, सांस्कृतिक , शैक्षणिक सम्पूर्ण रूप से उत्कर्ष पर था।

सन्दर्भ ग्रन्थ : "सम्राट मिहिर भोज", लेखक -विजय नाहर, प्रकाशक -पिंकसिटी पब्लिशर्स, चौड़ा रास्ता, जयपुर

भारतीय इतिहास : एक सर्वेक्षण (भाग-5)(अरब मुस्लिम सेनापतियों की कब्र भारत में कैसे बनी)


केवल सिंध ही नहीं , काबुल जाबुल और कश्मीर में भी आक्रांता अरब मुस्लिम सेनापतियों सहित सैनिको को मौत के घाट उतार कर भारतीय सीमाओ की सुरक्षा, भारतीय धर्म एवं सभ्यता संस्कृति को संरक्षण एवं सुरक्षा प्रदान करने का कार्य गुर्जर प्रतिहार नरेश नागभट्ट प्रथम , महाराजा दाहिर सेन के पुत्र जयसिंह , काबूल जाबुल के सहानुशाई साम्राज्य के नरेश रत बल /रण बल एवं कश्मीर के सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड़ ने महर्षि हारीत के मार्गदर्शन में कैसे किया। जानने के लिए देखे इतिहासकार विजय नाहर के इतिहास पर बनी व्याख्यानमाला
सन्दर्भ पुस्तक : प्रारम्भिक इस्लामिक आक्रमण एवं भारतीय प्रतिरोध , लेखक -विजय नाहर , पिंकसिटी प्रकाशन , जयपुर , M:9602380388


भारतीय इतिहास: एक सर्वेक्षण भाग-4 (चचनामाह एक झूठ का पुलिंदा, भारत पर हुए अरबी आक्रमणों का सत्य)


भारतीय इतिहास में जिन अरबों के आक्रमणों का उल्लेख उनका स्त्रोत "चचनामाह" नामक कथा कहानियों की एक पुस्तक है यह पुस्तक एक झूठ का पुलिन्दा है। तत्कालीन भारतीय स्त्रोतों की बिल्कुल उपेक्षा की गई है। मोहम्मद बिन कासिम की मृत्यु, दूसरे सेनापति जुनेद की मृत्यु व तीसरे सेनापति तामिन की मृत्यु तथा बप्पारावल द्वारा अरबो का समूलोच्छेद की जानकारी भारतीय साहित्य में ही उपलब्ध हैं। डॉ ईश्वरीप्रसाद, डॉ आशीर्वादी लाल श्रीवास्तव, डॉ आर सी मजूमदार, कर्नल टॉड जैसे प्राचीन इतिहासकार जिनकी पुस्तकें प्रामाणिक मानी जाती है, इनका एक मात्र स्त्रोत चचनामाह है। आगे के इतिहासकारो ने भी इन्ही की किताबों से संदर्भ लिए। जबकि असली इतिहास 'देवल स्मृति','खुमाण रासों','हारीत स्मृति','वाक्पति राय का गोड़वहो', 'कल्हण की राजतरंगिणी','मुथा नैणसी री ख्यात','भारतीय इतिहास के 6 स्वर्णिम पृष्ठ-वीर सावरकर','श्याम सुंदर भट्ट का सिंधुपति महाराज चच देव एवम सिन्धु नरेश दाहरसेन', 'गंगाराम सम्राट का हिंदुस्तान', 'प्रारंभिक इस्लामिक आक्रमण एवं भारतीय प्रतिरोध' जैसे भारतीय ग्रंथों में है।
चचनामाह एक झूठ का पुलिंदा कैसे? जानने के लिए देखे

भारतीय इतिहास एक सर्वेक्षण-भाग 3 (भारत पर पहले सफल अरब मुस्लिम आक्रमण व मो. बिन कासिम की मौत का राज)

भारत भूमि पर अरब मुस्लिमों के तेरह आक्रमणों में से दस आक्रमण स्थल मार्ग से मकरान पर हुए। जिनमे क्रमश: सेनापति हारिस बिन मरहा, अब्दुल्ला बिन सवार, सनान बिन सलमह, रशीद, मंजर बिन हारुद, सलमह पुत्र हकम, असलम पुत्र सैयद, शेर पुत्र मुजाइड, मोहम्मद बिन हासन अथवा हारून आदि ने मकरान की और से आक्रमण किये। परन्तु सिंध के राजा चचदेव ने उन्हें पराजित कर हरा दिया। चचदेव की मृत्यु के बाद तीन आक्रमण समुद्री मार्ग से देवल पर हुए। इसमें उबेदुल्ला और दूसरा सेनापति बजिल ने पहला आक्रमण किया। दूसरा बुंदेलों के नेतृत्व में आक्रमण किया। यह भी मारा गया। तीसरा आक्रमण इराक के गवर्नर हज्जाज ने अपने युवा दामाद मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में किया जिसे बौद्ध शासको की सहायता से भारत की धरती पर रखने में सफलता प्राप्त हुई। भारत भूमि पर बारह असफल आक्रमणों के पश्चात तेरहवें आक्रमण में मोहम्मद बिन कासिम को सिंध में सफलता मिली परन्तु सिंध की राजधानी आलोर में वह मारा गया। इससे पूर्व सिंध के राजा दाहिर से पराजित होने के बाद भी कूटरचित जाल से राजा दाहिर को मार दिया गया। कैसे? जानने के लिए देखे इतिहासकार विजय नाहर का वीडियो।